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कोरोना वैक्सीन: क्या वैक्सीन लेने के बाद भी मुझे कोविड हो सकता है?

  May 10, 2021   समय पढ़ें 12 min
कोरोना वैक्सीन: क्या वैक्सीन लेने के बाद भी मुझे कोविड हो सकता है?
भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान अपने तीसरे चरण में है. इस बीच. देश महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है. ऐसे में आपके मन में वैक्सीन को लेकर कई सवाल होंगे. पढ़िए उनके जवाब.

कोविड वैक्सीन के लिए कौन योग्य है?

18 साल से अधिक उम्र का हर व्यक्ति कोविड वैक्सीन के लिए योग्य है.

एक मई से शुरू हुए कोविड टीकाकरण अभियान के तीसरे चरण में 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को शामिल किया गया है.

कोविड टीकाकरण अभियान के पहले चरण की शुरुआत 16 जनवरी, 2021 से शुरू हुई थी जिसमें हेल्थ केयर वर्कर्स और फ्रंट लाइन वर्कर्स को वैक्सीन देने में प्राथमिकता दी गई.

दूसरा चरण एक मार्च, 2021 से शुरू हुआ जब 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को इसमें शामिल किया गया.

भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान जारी है, इस बीच देश महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है. ऐसे में आपके मन में वैक्सीन को लेकर कई सवाल होंगे. पढ़िए उनके जवाब.

आप कोविड वैक्सीन के लिए कैसे रजिस्टर कर सकते हैं?

तीसरे चरण में टीका लगवाने के लिए लोगों को कोविन प्लेटफॉर्म या आरोग्य सेतु एप पर जाकर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा, सीधे अस्पताल में जाकर रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकेगा.

सबसे पहले cowin.gov.in की वेबसाइट पर जाएं और अपना मोबाइल फ़ोन नंबर दर्ज करें. आपके नंबर पर आपको एक वन टाइम पासवर्ड मिलेगा. इस नंबर को वेबसाइट पर पर लिखे ओटीपी बॉक्स में लिखें और वेरिफ़ाई लिखे आइकन पर क्लिक करें. इससे ये वेरिफ़ाई हो जाएगा.

इसके बाद आपको रजिस्ट्रेशन का पन्ना नज़र आएगा. यहाँ अपनी जानकारी लिखें और एक फ़ोटो आईडी भी साझा करें. अगर आपको पहले से कोई बीमारी है जैसे- शुगर, ब्लड प्रेशर, अस्थमा अन्य तो इसकी जानकारी विस्तार से लिखें.

जब ये जानकारी पूरी हो जाए तो रजिस्टर लिखे आइकन पर क्लिक करें. जैसे ही ये रजिस्ट्रेशन पूरा होगा आपको कम्प्यूटर स्क्रीन पर अपनी अकाउंट डिटेल नज़र आने लगेगी. इस पेज से आप अपनी अपॉइटमेंट डेट तय कर सकते हैं.

भारत में किन वैक्सीन को मंजूरी मिली है?

भारत में कोविड-19 से बचाव के लिए जो वैक्सीन लगाई जा रही है, उन्हें ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ने अनुमति दी है. ये वैक्सीन हैं - कोविशील्ड और कोवैक्सीन. इसके अलावा अब रूस की स्पुतनिक V को भी भारत में इस्तेमाल की मंज़ूरी दी जा चुकी है. कहा जा रहा है कि ये वैक्सीन कोविड-19 के ख़िलाफ़ क़रीब 92% सुरक्षा देती है.

सरकार ने कहा है कि स्पुतनिक वी का उत्पादन भी भारत में किया जाएगा.

कोविशील्ड जहां असल में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका का संस्करण है वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है जिसे 'स्वदेशी वैक्सीन' भी कहा जा रहा है. कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया कंपनी ने बनाया है.

वहीं, कोवैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर बनाया है.

क्या कोविड वैक्सीन फ्री हैं?

केंद्र सरकार के अस्पतालों में वैक्सीन सभी को मुफ़्त में दी जाएगी.

लेकिन राज्य सरकार के अस्पतालों में इसके लिए भुगतान करना पड़ सकता है.

उत्तर प्रदेश, असम, सिक्किम, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, समेत कई राज्यों ने कहा है कि उनके यहां 18 साल से ऊपर की उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन निशुल्क दिया जाएगा.

प्राइवेट अस्पताल में लोगों को इसका भुगतान करना होगा. कोविशिल्ड प्राइवेट अस्पतालों को 600 रुपये प्रति खुराक और कोवैक्सीन 1200 रुपये प्रति खुराक के दर से उपलब्ध कराई जाएगी.

कोविशिल्ड और कोवैक्सीन ने कहा है कि वो केंद्र सरकार को 150 रुपये प्रति खुराक के दर से आपूर्ति करेगी.

जबकि राज्य सरकारों के लिए कोविशिल्ड की कीमत 300 रुपये प्रति खुराक और कोवैक्सीन की 600 रुपये प्रति खुराक तय की गई है.

क्या कोविड वैक्सीन सुरक्षित है?

ज़्यादातर विशेषज्ञों की राय है कि कोरोना से लड़ने के लिए बनी अब तक की लगभग सभी वैक्सीनों की सुरक्षा संबधी रिपोर्ट ठीक रही है.

हो सकता है वैक्सिनेशन के चलते मामूली बुखार आ जाए या फिर सिरदर्द या इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर दर्द होने लगे.

हालांकि ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की कोरोना वैक्सीन लगवाने वाले कई लोगों के मस्तिष्क में असामान्य रूप से ख़ून के थक्के पाए गए हैं.

वैक्सीन लेने के बाद कई लोगों में "सेरिब्रल वीनस साइनस थ्रॉम्बोसिस" (सीवीएसटी) यानी मस्तिष्क के बाहरी सतह पर ड्यूरामैटर की परतों के बीच मौजूद शिराओं में ख़ून के थक्के देखे गए हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि अगर कोई वैक्सीन 50 फीसदी तक प्रभावी होती है, तो उसे सफल वैक्सीन की श्रेणी में रखा जाता है.

डॉक्टरों का ये भी कहना है कि वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य में होने वाले किसी भी मामूली बदलाव पर पूरी नज़र बनाए रखनी होगी और किसी भी बदलाव को तुरंत किसी चिकित्सक से शेयर करना होगा.

क्या वैक्सीन लेने के बाद भी मुझे कोविड हो सकता है?

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मौजूदा कोविड-19 वैक्सीन में से कोई भी संक्रमण को पूरी तरह रोक सकती है.

उद्हारण के तौर पर इंग्लैंड में 40 हज़ार लोगों पर की गई स्टडी बताती है कि फाइज़र-बायोएनटेक की एक डोज़ लेने से संक्रमण का ख़तरा 70% कम हो जाता है और दो डोज़ लेने के बाद 85%.

भारत में जो वैक्सीन लग रही है, उनमें एक है कोविशील्ड, जिसके अंतरराष्ट्रीय क्लिनिकल ट्रायर दिखाते हैं कि ये 90% तक कारगर है. वहीं दूसरी वैक्सीन है कोवैक्सीन, जिसके तीसरे चरण के ट्रायल का प्रारंभिक डेटा दिखाता है कि वो 81% कारगर है.

इसके अलावा अब रूस की स्पुतनिक V को भी भारत में इस्तेमाल की मंज़ूरी दी जा चुकी है. कहा जा रहा है कि ये वैक्सीन कोविड-19 के ख़िलाफ़ क़रीब 92% सुरक्षा देती है.

यानी कोई भी वैक्सीन लेने से संक्रमण का ख़तरा बहुत हद तक कम हो जाता है और वैक्सीन किसी को गंभीर रूप से बीमार होने से बचा सकती है.

भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक़ वैक्सीन सेंटर के साथ-साथ खुराक लेने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग, फेस कवर, मास्क, हैंड सैनिटाइजेशन के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है.

वैक्सीन कैसे काम करती है?

एक वैक्सीन आपके शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है.

वैक्सीन में किसी जीव के कुछ कमज़ोर या निष्क्रिय अंश होते हैं जो बीमारी का कारण बनते हैं.

ये शरीर के 'इम्यून सिस्टम' यानी प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण (आक्रमणकारी वायरस) की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके ख़िलाफ़ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं जो बाहरी हमले से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं.

वैक्सीन लगने का नकारात्मक असर कम ही लोगों पर होता है, लेकिन कुछ लोगों को इसके साइड इफ़ेक्ट्स का सामना करना पड़ सकता है. हल्का बुख़ार या ख़ारिश होना, इससे सामान्य दुष्प्रभाव हैं.

वैक्सीन लगने के कुछ वक़्त बाद ही आप उस बीमारी से लड़ने की इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं.

अमेरिका के सेंटर ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि वैक्सीन बहुत ज़्यादा शक्तिशाली होती हैं क्योंकि ये अधिकांश दवाओं के विपरीत, किसी बीमारी का इलाज नहीं करतीं, बल्कि उन्हें होने से रोकती हैं.

मुझे वैक्सीन की दूसरी खुराक कब लेनी चाहिए?

कोवैक्सीन की दूसरी डोज़, पहली डोज़ के 4 से 6 हफ़्ते के अंतराल के बाद लेने की सलाह दी जाती है.

कोविशील्ड के लिए दो खुराक के बीच का अंतराल 4 से 8 हफ़्ते रखने की सलाह दी जाती है, वहीं अगर 6 से 8 हफ़्ते के अंतराल में ली जाए तो उससे और ज़्यादा सुरक्षा मिलती है. आप अपनी सहूलियत के हिसाब से वैक्सीन की दूसरी डोज़ की तारीख़ चुन सकते हैं.

स्पुतनिक वैक्सीन के मामले में दूसरी खुराक तीन हफ्ते बाद दी जा सकती है.

ध्यान रखें कि उसी वैक्सीन की दूसरी डोज़ लें, जिसकी पहली ली है. अगर पहले भी कोवैक्सीन लगवाई तो दूसरी बार भी वही लगवाएं और पहली बार कोविशील्ड लगवाई थी तो दूसरी बार भी वही वैक्सीन लगवाएं.

जब दूसरी वैक्सीन लगवाने जाएं तो पहली डोज़ के बाद दिया गया वैक्सीन सर्टिफिकेट लेकर जाएं. ये वैक्सीन सर्टिफिकेट, वैक्सीन केंद्र ही आपको प्रिंट करके देता है. इसके अलावा आप कोविन पोर्टल से भी ये सर्टिफिकेट निकाल सकते हैं. इसके लिए आपको वही मोबाइल नंबर डालना होगा जो रेजिस्ट्रेशन के वक़्त डाला था.

मैंने पहली खुराक ले ली है, दूसरी खुराक के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे कराऊं?

हां, वैक्सीन की दूसरी डोज़ के लिए आपको फिर से अपॉइंटमेंट लेना होगा. ध्यान रखिए, पहली डोज़ लेने के बाद दूसरी डोज़ के लिए अपॉइंटमेंट अपने आप शिड्यूल नहीं होगा. कोविन पोर्टल की मदद से आप उसी वैक्सीन सेंटर के लिए फिर से अपॉइंटमेंट ले सकते हैं, जहां आपने वैक्सीन (कोवैक्सीन या कोविशील्ड) की पहली डोज़ ली थी.

अगर आपको ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन में कोई दिक़्क़त आए तो आप राष्ट्रीय हेल्पलाइन '1075' पर फ़ोन करके कोविड-19 टीकाकरण और कोविन सॉफ्टवेयर से जुड़ी कोई भी बात पूछ सकते हैं.

अगर आप ऑनलाइन अपॉइंटमेंट नहीं ले सकते हैं तो भी आपके पास एक विकल्प है. वैक्सीन केंद्रों पर हर रोज़ सीमित संख्या में ऑन-स्पॉट रेजिस्ट्रेशन कराने की सुविधा होती है. मतलब आप सीधे जाकर भी वहां रजिस्टर करा सकते हैं. हालांकि इंतज़ार और लाइन से बचने के लिए कोविन पोर्टल के ज़रिए ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने की सलाह दी जाती है.

क्या मैं वैक्सीन की दूसरी डोज़ किसी अन्य राज्य/ज़िले में लगवा सकता हूं?

हां, आप किसी भी राज्य/ज़िले में वैक्सीन लगवा सकते हैं. बस ये है कि आप सिर्फ उन्हीं केंद्रों पर वैक्सीन लगवा पाएंगे जहां वो वाली वैक्सीन लग रही हो, जो आपने पहली डोज़ के दौरान लगवाई थी.

क्या मैं दो अलग-अलग वैक्सीन ले सकता हूं?

अमेरिकी हेल्थ एजेंसी सीडीसी का कहना है कि सबसे अच्छी वैक्सीन वही है जो सबसे पहले आपके लिए उपलब्ध हो क्योंकि वो सुरक्षित है, असरदार है और आपके बीमार पड़ने के जोखिम को कम करती है.

वैक्सीन की दूसरी खुराक में अलग वैक्सीन लेने की सलाह किसी हेल्थ एजेंसी या एक्सपर्ट ने नहीं दी है.

वैक्सीन कितने दिन तक मुझे कोविड से सुरक्षित रखेगी?

भारतीय केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक़, वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा की अवधि अभी तक तय नहीं है.

क्या सभी वैक्सीन कोविड के अलग-अलग वैरिएंट्स पर प्रभावी हैं?

वैज्ञानिकों के मुताबिक़ कोविड वैक्सीन से कोरोना के वैरिएंट्स को रोकने में मदद मिलेगी.

नेचर पत्रिका में प्रोफ़ेसर गुप्ता और उनके साथी रिसर्चरों के प्रकाशित शोध अध्ययन के मुताबिक़ कुछ वैरिएंट निश्चित तौर पर इन वैक्सीनों से बच जाएंगे और ऐसे वैरिएंट पर नियंत्रण अगली पीढ़ी की वैक्सीनों और वैकल्पिक वायरल एंटीजन के इस्तेमाल से हो पाएगा.

वैक्सीन कैसे बनती है और उसे ओके कौन करता है?

भारत वैक्सीन बनाने का पावर हाउस है जहाँ दुनिया भर की 60 प्रतिशत वैक्सीन का उत्पादन होता है.

दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन प्रोग्राम भी भारत में चलता है जिसके तहत सालाना 5.5 करोड़ महिलाओं और नवजात को 39 करोड़ वैक्सीन दिए जाते हैं.

सबसे पहले किसी भी वैक्सीन के प्रयोगशाला में टेस्ट होते हैं. फिर इनको जानवरों पर टेस्ट किया जाता है.

इसके बाद अलग-अलग चरणों में इनका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है. फिर अध्ययन करते हैं कि क्या ये सुरक्षित हैं, इनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है और क्या ये प्रायोगिक रूप से काम कर रही हैं.

सबसे ज़्यादा बनने वाली 3 वैक्सीनें ये होती हैं:

*लाइव वैक्सीन

लाइव वैक्सीन की शुरुआत एक वायरस से होती है लेकिन ये वायरस हानिकारक नहीं होते हैं. इनसे बीमारियां नहीं होती हैं लेकिन शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्या को बढ़ाते हैं. इससे शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है.

इस तरह की वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते जुलते जेनिटिक कोड और उस तरह के सतह वाले प्रोटीन वाले वायरस होते हैं जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

जब किसी व्यक्ति को इस तरह की वैक्सीन दी जाती है तो इन 'अच्छे' वायरसों के चलते बुरे वायरसों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है. ऐसे में जब बुरा वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र के चलते वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है.

*इनएक्टिवेटेड वैक्सीन

इस तरह की वैक्सीन में कई सारे वायरल प्रोटीन और इनएक्टिवेटेड वायरस होते हैं. बीमार करने वाले वायरसों को पैथोजन या रोगजनक कहा जाता है.

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन में मृत रोगजनक होते हैं. ये मृत रोगजनक शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते लेकिन शरीर इनको बाहरी आक्रमण ही मानता है और इसके विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगते हैं.

इनएक्टिवेटेड वायरस से बीमारी का कोई खतरा नहीं होता. ऐसे में शरीर में विकसित हुए एंटीबॉडी में असल वायरस आने पर भी बीमारी नहीं फैलती और ये एक बहुत ही भरोसेमंद तरीका बताया गया है.

*जीन बेस्ड वैक्सीन

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन की तुलना में जीन बेस्ड वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इनका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है. ज़ाहिर है, कोरोना वायरस की वैक्सीन की करोड़ों डोज़ की एक साथ जरूरत होगी. जीन बेस्ड वैक्सीन में कोरोना वायरस के डीएनए या एम-आरएनए की पूरी जेनेटिक सरंचना मौजूद होगी.

इन पैथोजन में से जेनेटिक जानकारी की महत्वपूर्ण संरचनाएं नैनोपार्टिकल्स में पैक कर कोशिकाओं तक पहुंचाई जाती हैं. ये शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती है और जब ये जेनेटिक जानकारी कोशिकाओं को मिलती है तो वह शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देती हैं. जिससे बीमारी को खत्म किया जाता है.

भारत में किसी भी वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के आधार ही होती है जिसकी सभी चरणों की समीक्षा 'ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया' नामक सरकारी संस्था करती है.

डीजीसीआई से हरी झंडी मिलने के बाद ही किसी वैक्सीन के बल्क निर्माण की अनुमति मिलती है.

गुणवत्ता नियंत्रण यानी क्वॉलिटी कंट्रोल को ध्यान में रखते हुए वैक्सीन के बल्क निर्माण के मानक तैयार किए जाते हैं और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समय-समय पर वैज्ञानिकों तथा विनियामक प्राधिकरणों के माध्यम से चेकिंग होती रहती है.

भारत में मिला 'डबल म्यूटेंट' वेरिएंट क्या है?

भारत में कोरोना वायरस के एक नए 'डबल म्यूटेंट' वेरिएंट का पता चला है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि देश के 18 राज्यों में कई 'वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न्स' (VOCs) पाए गए हैं. इसका मतलब कि देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस के अलग-अलग प्रकार पाए गए हैं जो स्वास्थ्य पर हानिकारक असर डाल सकते हैं.

इनमें ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील के साथ-साथ भारत में पाया गया नया 'डबल म्यूटेंट' वेरिएंट भी शामिल है. वायरस का यह म्यूटेशन क़रीब 15 से 20 फ़ीसदी नमूनों में पाया गया है जबकि यह चिंता पैदा करने वाली बात है कि पहले की किस्मों से मेल नहीं खाता.

हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ़ कर दिया है कि इस डबल म्यूटेंट वेरिएंट के कारण देश में संक्रमण के मामलों में उछाल नहीं दिखता है. मंत्रालय ने बताया है कि इस स्थिति को समझने के लिए जीनोमिक सीक्वेंसिंग और एपिडेमियोलॉजिकल (महामारी विज्ञान) स्टडीज़ जारी है.

दरअसल डबल म्यूटेंट वेरिएंट वायरस का वो रूप है, जिसके जीनोम में दो बार बदलाव हो चुका है. हालांकि वायरस के जीनोमिक वेरिएंट में बदलाव होना आम बात है. (Source : bbc)


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